रविवार, 23 फ़रवरी 2025

उज़्बेकी उपन्यासकार अस्कद मुख्तार

 

उज़्बेकी उपन्यासकार अस्कद मुख्तार 

 

                एक कवि, नाटककार, उपन्यासकार, कहानीकार और अनुवादक के रूप में प्रसिद्ध उज़्बेकी साहित्यकार अस्कद मुख्तार का जन्म 23 दिसंबर सन 1920 को फ़रगना के मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ । आप के पिता एक रेलवे सड़क कर्मचारी थे । आप का बचपन फ़रगना में ही बीता । पिता की मृत्यु हो जाने के बाद आप अनाथालय में रहते हुए ही बड़े हुए । पिता की मृत्यु के समय आप सिर्फ 11 वर्ष के थे ।  बड़ी मुश्किलों से आप ने उरता मकतब और हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की । अध्ययन के प्रति यह आप का जुनून ही था कि सन 1942 में आप ने एशियन सेंट्रल युनिवर्सिटी,ताशकंद से भाषाशास्त्र/ फिलोलाजी में स्नातक की शिक्षा पूरी की । इसके बाद नौकरी की शुरुआत हुई और आप ने अंदिजान के शैक्षणिक संस्थान में उज़्बेक साहित्य विभाग अंतर्गत प्राध्यापक के रूप में कार्यभार ग्रहण किया । वहां से सेवा मुक्त होने के बाद आपने अपना जीवन साहित्य सेवा को समर्पित कर दिया । कारीगरों, मजदूरों, कपास की खेती से जुड़े किसानों इत्यादि को आपने अपने साहित्य लेखन के केंद्र में रखा । सन 1957 से 1969 तक आप एस.एस.आर. उज़्बेकिस्तान लेखक संघ के सचिव रहे । आप ने शर्क युलजुजी और गुलिस्तान पत्रिका के लिए भी कार्य किया । रज़्ज़ाक़ अबुराशिद, जमाल कमाल, इरकिन वाहिद, रऊफ़ पार्फी, हलीमा खुदायबरदी, मुहम्मद अली, शराफ़ बशबेक और ममादली मोहम्मद जैसे उज़्बेकी साहित्यकार उम्र में तो आप से छोटे हैं लेकिन आप के समकालीन साहित्यकार माने जा सकते हैं । आप की मृत्यु 17 अप्रैल सन 1997 में हुई ।

         साहित्य जगत में आप का प्रवेश एक युवा कवि के रूप में होता है । आप की प्रारंभिक कविताओं पर गफ़ूर गुलाम और हामिद ओलिंजान का स्पष्ट प्रभाव दिखाई पड़ता है । आप का प्रथम काव्य संग्रह सन 1938 में पुलात कुवाची नाम से प्रकाशित हुआ । पुलात कुवाची का अर्थ है – फ़ौलाद ढालनेवाले । आप के अन्य कई कविता संग्रह प्रकाशित हुए जिनमें से तीन संग्रह अँग्रेजी भाषा में माय फ़ेलो सिटिजन्स’, सिटी ऑफ स्टील और थैंक यू माय डियर’, नाम से प्रकाशित हुए हैं । आप का पहला और विश्व प्रसिद्ध उपन्यास सन 1954 में आपा सिंगिलर नाम से प्रकाशित हुआ । यही उपन्यास अँग्रेजी में सिस्टर्स और हिन्दी में चिंगारी नाम से सन 1966 में प्रकाशित हुआ । इस उपन्यास का हिन्दी अनुवाद राय गणेश चंद्र ने किया है । सन 1966 में यह उपन्यास विश्व की 18 भाषाओं में 23 संस्करणों के साथ छपा । इसकी कुल 20 लाख़ से अधिक प्रतियाँ उस समय प्रकाशित हुईं । आप की 30 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । आप का प्रकाशित अधिकांश साहित्य शूरा पीरिएड से संबंधित एवं प्रभावित रहा है । अँग्रेजी भाषा में जो किताबें आप की प्रकाशित हुई हैं उनमें स्टील कास्टर’(1947), वेयर रीवर कोंफ्लुएंस’(1950), स्टील सिटी (1950), काल टु लाईफ़ (1956), बर्थ (1960), टाइम इन माय डेस्टिनी’, दवर’, चिनार’, अमू इत्यादि प्रमुख हैं । जिन साहित्यकारों के साहित्य का आप ने अनुवाद किया उनमें ए.पुश्किन’, एम.यू. लरमोनताव’, एम.गोर्की और ए.ए.ब्लॉक प्रमुख हैं ।

             सन 1954 में आपा सिंगिलर नाम से प्रकाशित अस्कद मुख्तार  का विश्व प्रसिद्ध उपन्यास अँग्रेजी में सिस्टर्स और हिन्दी में चिंगारी नाम से क्रमश: सन 1966 व 1979 में प्रकाशित हुआ । विद्वान समीक्षकों के अनुसार  यह उपन्यास युज़्बेकिस्तान के आधुनिकीकरण, पुनर्निर्माण और शहरीकरण का व्यापक स्रोत माना जा सकता है । रूप विधान की दृष्टि से उपन्यास किसी न किसी व्यक्ति विशेष के जीवन के आस-पास बुना हुआ ताना-बाना होता है । प्रस्तुत उपन्यास को ध्यान से पढ़ने पर स्पष्ट हो जाता है कि यह उपन्यास व्यक्ति नहीं अपितु स्थान और विचार केन्द्रित उपन्यास है ।  उपन्यास चिंगारी जब प्रकाशित हुआ, उन दिनों “उज़्बेकिस्तान में सोवियत सत्ता के शुरू के वर्षों में छुपे संघर्ष का तनाव पूरे जोर पर था । नए जीवन के दुश्मनों की शक्तियां अक्सर,यत्र-तत्र बचे खुचे बसमाचियों के सशक्त गिरोहों के सहारे क्रांति द्वारा जनता के जीवन में, उसकी चेतना में लाई जा रही नहीं लहर का मार्ग अवरुद्ध करने की कोशिश कर रही थीं ।“1 इस परिवेश को उपन्यास के कथानक के माध्यम से मुख्तार समाजवादी यथार्थवाद की मूल विचारधारा के साथ चित्रित करते हैं । उपन्यास के माध्यम से आप ने उन उज़्बेकी महिलाओं के संघर्ष को बयां किया है, जिन्होंने विरोध और संघर्ष की परिस्थितियों से लोहा लेते हुए अपने भविष्य को गढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी । ये महिलाएं शताब्दियों पुराने विचारों और अंधविश्वासों को अपनी नई सोच की चिंगारी से हवन कर देती हैं ।

           यह उपन्यास उन उज़्बेकी औरतों की साहस और शौर्य की गाथा है जिन्होंने पुरानी दमनकारी व्यवस्था और मान्यताओं के खिलाफ क्रांति करते हुए, अपने लिए मेहनतपूर्ण पर सम्मानजनक जीवन का मार्ग स्वयं प्रशस्त करती हैं । अपनी भाग्य विधाता खुद बनती हैं । उस समय शुरू हु नए आर्थिक नीतियों अर्थात नेपमेन’, कुद्रतुल्ला ख्वाजा का वर्कशॉप,  वहां कठिन परिश्रम करती औरतें, उनकी गंदी बस्तियां और गरीबी इत्यादि का जिस बारीकी से उपन्यास में मुख्तार वर्णन करते हैं मानों  ह सब  उनका ही भोगा  हुआ यथार्थ रहा हो । इन स्त्रियों के प्रति उपन्यासकार पूरी सहानुभूति रखता है । सहकारी संघों की स्थापना के द्वारा नई बनाई मिल की शुरुआत, व्यक्तिगत व्यापार की समाप्ति, उज़्बेकिस्तान में श्रमिक वर्ग की नई शुरुआत और इन्हें ताकतवर समाजवादी शक्ति के रूप में स्थापित करने की मंशा से उपन्यासकार पूरा ताना-बाना बुनते हैं । साथ ही साथ इस उपन्यास के माध्यम से मुख्तार नारी शक्ति, उसके संकल्प, उसकी स्वतंत्रता, सम्मान और अधिकार को भी प्रमुखता से चित्रित करते हैं ।

               एक तरफ मेहनतकश महिला पात्रों में जुराखां, हाजिया, अनाखां, नजाकत, अंजिरत और उनके सहायक तथा क्रांतिकारी मित्र बोतशोविक, यफीम दनीलोविच, इंजीनियर दोब्रोखोतोव  जैसे लोग हैं तो दूसरी तरफ कुद्रतुल्लाह ख्वाजा, नईमी और जासूसी करने वाला चाय विक्रेता जैसे पात्र हैं । लेखक ने अपने पात्रों के जीवन के व्यक्तिगत पक्ष और उसकी विशेषताएं, उनके सामाजिक जीवन के ढांचे और उनकी मानसिक स्थिति को बड़े युक्तियुक्त ढंग से उभारा है ।“2 इसके एक तरफ उपन्यास का कथ्य अधिक स्पष्ट होता है तो दूसरी तरफ शोषण और बदलाव की आवश्यकता का भाव अधिक प्रबल और विश्वसनीय प्रतीत होता है । उपन्यास की प्रमुख महिला पात्रों में जराखाँ  प्रमुख है । लेनिन से मिलने के बाद उसके जीवन को सच में एक नई दिशा मिलती है । मास्को में रहते हुए उसने परंजी छोड़ दी थी । सरकारी कामकाज से जुड़े रहने के कारण उसके अंदर अपने अधिकारों की जागरूकता, दृढ़ता और धैर्य जैसे गुण अच्छे से विकसित हो गए थे ।  वह शिक्षक नमी जैसे कमजर्फ़ लोगों पर व्यंग्य करने से नहीं डरती, अन्य स्त्रियों को धैर्य पूर्वक सुना और उनकी समस्याओं के समाधान का रास्ता सुझाते हुए उसके नेतृत्व कौशल को आसानी से समझा जा सकता है । इसी तरह की दृढ़ निश्चयी और बहादुर स्त्री के रूप में अनाखाँ भी सामने आती है । बीते हुए कल के चंगुल से एक बार निकल जाने के बाद उसके बढ़े हुए कदमों को रोकने का साहस किसी में नहीं होता ।  वह जो ठान लेती है उसको पूरा करके ही रती है । हत्या का भ भी उसे इंच मात्र भी डिगा नहीं पाता । डांवाडोल मन स्थिति के प्रतीक के रूप में नजाकत जैसी पत्र उपन्यास में चित्रित किए गए हैं, जो साहस और र को समान रूप से जीती है । साथी स्त्रियों की बातों से आंदोलित भी होती है और पति ईशन द्वारा डराए जाने पर दुबक भी जाती है । अंजीरत जैसी योवृद्ध पात्र पुराने संस्कारों, रूढ़ियों और विचारों से धीरे-धीरे सही पर अंत तक छुटकारा पा जाती हैं ।

                  उपन्यास में उज़्बेकी स्त्रियों की मनःस्थिति और उनके संस्कारों को बड़ी सूक्ष्मता से उपन्यासकार सामने लाते हैं ।  शिक्षक नईमी भी अपने भाषण के द्वारा यही आवाहन करता है कि स्त्रियों को सहकारी समितियां में सहभागी होना चाहिए, उन्हें परंजी छोड़ते हुए बच्चों को शिशुगृह में डालने के लिए तैयार होना चाहिए । साथ ही साथ वह यह भी कहता है कि यदि उनके पति उन पर दबाव बनाए तो उन्हें उनकी बात नहीं माननी चाहिए । इन बातों का परिणाम यह हुआ की सभा में आई हुई स्त्रियां एक-एक कर वहां से जाने लगी । शिक्षक नईमी की बातें उन्हें रुचिकर नहीं लगी । अपने संस्कारों और परंपराओं से बँधी हुई  स्त्रियां अपने नवजात को शिशुगृह में छोड़ने और पति की बात की अवज्ञा करने से सहमत होती नहीं दिखती ।  लेकिन यही स्त्रियां जुराखाँ के प्रति प्रेम और स्नेह से लबालब होते हुए आवेश में एक साथ परंजी उतार कर आग में उसका दहन कर देती हैं । अनाखाँ पर छूरे से कायरता पूर्ण हमला इसकी बड़ी वजह था । अपने प्रति इस तरह के व्यवहार से स्वयं अनाखाँ तिलमिला गई थी । एक घायल शेरनी की तर अपने आप को संभालते हुए सब को चुनौती देती है । इस बीच पहली बार वह बिना परंजी के बाहर निकलती है । उपन्यासकार अनाखाँ का वर्णन करते हुए लिखता है,” उसके कदमों में दृढ़ता थी लेकिन ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके पैरों के नीचे धरती कांप रही हो । ऐसा प्रतीत होता है जैसे सिर्फ लोग ही नहीं बल्कि दीवारें भी उसे घूर रही हो, परंजी के बिना अपना सर सीधे किया रहना, एकदम सीधे आ की ओर देखना, बिना जोर लगाए डढाना मुश्किल हो रहा था ।“3

              अनाखाँ ने सिर्फ परंजी उतार कर नहीं फेंकी थी, बल्कि अपने र और बंधनों की मानो पुरानी केंचुली उतार दी हो । वह अब अपने अंदर बने उत्साह और उमंग का संचार महसूस करती है । रूसी इंजीनियर के प्रति प्रेम को अंदर ही अंदर स्वीकार करने का साहस जुटा पाती है । इसी साहस के दम पर इंजीनियर पर झूठे आरोप लगाने वालों के विरुद्ध निडरता से बोल पाती है । उपन्यास में बुरे या खलनायक पात्रों में बाय कुद्रतुल्लाह का पुत्र, नईमी, नीली मस्जिद का इमाम अब्दु मजीद ख्वाजा, दुकानदार मतकोबुल  जैसे चरित्र गढ़े गए हैं । उपन्यास की स्त्रियों के प्रति इनका व्यवहार और स्त्रियों के रोपूर्ण विरोध चित्रण के माध्यम से उपन्यासकार आने वाले बदलाव की तरफ इशारा तो करते ही हैं, साथ ही साथ इ संघर्ष में स्त्रियों के प्रति अपनी सहानुभूति पूर्ण दृष्टि भी डालते हैं । किसी स्त्री की सामाजिक और आर्थिक स्थिति कैसी है ? उसके चित्रण के माध्यम से उस स्थिति के प्रति उपन्यासकार पाठकों की सहानुभूति बटोरता है ।  जैसे कि वह गधे पर बैठे एक मोटे व्यक्ति के चाय खाने में आने का दृश्य उपस्थित करते हुए लिखते हैं कि,”वह मोटा आदमी जिसका पेट भी भरा हुआ है, वह गधे की सवारी करता हुआ आता है और छाया में आराम करने लगता है । जबकि उसके पीछे जो स्त्री चलकर आ रही है, वह एक पुरानी पर बंद लगी परंजी पहने हुए है ।  उसकी गोद में एक बच्चा भी है । जब तक वह व्यक्ति छाया में आराम करता है वह स्त्री जमीन पर धूल में बैठे अपने नवजात को दूध पिलाती रहती है।“4 इस तरह के दृश्य मात्र से ही उस स्त्री की दैनिक स्थिति का आकलन हो जाता है । उसके प्रति लोगों में करुणा का भाव आता है जबकि पुरुष पात्र के प्रति क्रोध और घृणा । उपन्यासकार को ऐसे चित्रण में महारत हासिल है । परिस्थितियों का चित्रण परिवेश के माध्यम से करने में वह बेजोड़ हैं ।

                 उपन्यास की शुरुआत नैमंचा मोहल्ले के बुनकरों के बीच होती है । पीढ़ियों से यह लोग बुनाई का काम करते रहे हैं । औरतें सू कातती हैं और मर्द बो जो कि एक मोटे किस्म का कपड़ा होता है । हर पिता रने से पहले अपने बेटे के लिए चरखा जरूर छोड़ जाता था । यही उसके जीवन भर की कमाई होती और बेटे के लिए भविष्य की कमाई का रास्ता । बच्चों को उसकी पारिवारिक परिस्थितियां यह समझा देती थी कि हुनर ही जिंदगी है । इन बुनकरों में से कइयों को अपनी पिछली सा पीढ़ियों के नाम पता थे, लेकिन इनमें शायद ही कोई था जो अपने लिए कमरबंद तक का कपड़ा जुटा पाया हो । गरीबी, अभाव और शोषण मानो पीढ़ी दर पीढ़ी उनकी नियत बन गई थी । गंदी रुई की लगातार धुनाई करने के कारण 40 की उम्र तक आते-आते उनके फेफड़े खराब हो जाते, बावजूद इसके अपने बच्चों को यही हुनर सीखाने के लिए वे अभिशप्त थे । उनकी बस्तियों का वर्णन करते हुए उपन्यासकार लिखते हैं कि,” गर्मियों में नैमंचा की गलियां धूल से भर जाती । भूरी बेजान गर्द की तह छतों, मिट्टी की दीवारों और इक्के दुक्के सूखे पेड़ों को लपेट लेती । छड़ों की धुनाई से फिर से ताजा और साफ की गई रूई से निकलने वाली धूल के बादल कुहासे की तरह हवा में गतिहीन लटकते रहते ।  यह लोगों के हाथों व चेहरों पर जम जाती । उनके कपड़ों में चिमट जाती  और आंगन में भर जाती, जिन्हें उनकी पूरी नग्नता में टूटी-फूटी दीवारों के छेद से देखा जा सकता था ।“5

              असक मुख्तार इस मोहल्ले को एक उदास, बेरंग और फटेहाल मोहल्ला कहते हैं । इसी मोहल्ले में पुराने मालिकों में से एक आखरी कुद्रतुल्ला ख्वाजा का भी महलनुमा घर है, जो नैमंचा के जीवित शरीर से जोंक की तरह चिपका हुआ है ।  उपन्यासकार ने  शोष और शोषित दोनों का चित्रांकन बड़ी खूबी से किया है । साहुकार, दुकानदार और सर्राफ़ा मालिक इन गरीब बुनकरों को पैसे उधार देते लेकिन बदले में उनकी मेहनत का माल कौड़ियों के दम लेते । फिर भी उनका कर्ज कभी क नहीं होता । लेकिन नई सत्ता आने के बाद यहां के पुरुष बुनकरों ने सहकारिता के अंतर्गत एकजुट होकर “लाल सूती वस्त्र मजदूर सहकारिता ‘’ की शुरुआत की ।  इस नई व्यवस्था में कुद्रतुल्ला जैसे पुराने साहुकार ने हार नहीं मानी । नहीं आर्थिक नीति के अंतर्गत निजी रोजगार देने वाला ,”नई आर्थिक नीति के अंतर्गत निजी रोजगार देनेवाला, नई आर्थिक नीति का पालन करता बन गया ।  उसने ताशकंद के शैकांताहूर हिस्से में रहने वाले सईदक्कास नाम के एक पोशाक बेचने वाले को भाड़े पर रख लिया और मशीनों को नैमंचा की अपनी कारवाँ सराय में भेज दिया, जहां उसने काफी बड़ा सा वर्कशॉप लगा दिया । पुरुष सहकारिता में काम करने जाते लेकिन औरतें घर पर ही रहती । महिला जुलाहिनों में खासकर कारीगरों की विधवाओं को कुद्रतुल्ला के यहां काम मिल गया ।“6

                कुद्रतुल्लाह का सेवक मख्सूम नये सोवियत कानून से खुश नहीं था, जिसके अंतर्गत जुलाहिनें 8 घंटे काम करके अपनी नियमित मजदूरी की हकदार हो गई थी । वह चाहता था कि वह जुलाहिनों को डराए, धमकाए । उन्हें डांटे फटकारे तथा उनकी आंखों में अपने लिए र देखे । लेकिन अब वह यह सब नहीं कर सकता था अतः अपने आप को मजदूरों के ऊपर का आदमी महसूस करने में उसे जो सुख मिलता,से वह वंचित सा हो गया था । अब वर्कशॉप की औरतें उसे हंसी ठिठोली करती और कई बार वह शर्मा के भाग जाता । वर्कशॉप में काम करने वाली रिजवान कुद्रतुल्लाह और मख्सूम से नफरत करती थी । उसे अच्छे से याद आता है कि मख्सूम ने चिकनी चुपड़ी बातें करके उसके मरहूम पति सुल्तान को अपने कर्ज के जाल में फसाया । वह हर जुम्मे को आकर बो की एक गठरी ले जाता, जबकि उसका दिया कर्ज हफ्तावार बढ़ता ही रहा । बोज़ बनाते-बनाते बूढ़े सुल्तान की सेहत खराब हो गई । उसके सीने में दर्द रहता लेकिन वह रात रात भर बोनाने के लिए विवश था । बो न देने पर मख्सूम करघा ले जाने और घर बेचने की धमकी देता ।  बूढ़ा सुल्तान हर हाल में अपने बेटे एर्गश के लिए करघा बचा लेना चाहता था । उनके लिए करघे से वंचित होने का मतलब था गले में भिखारी का झोला टका लेना । और अंततः बो बनाने  के अत्यधिक दबाव और कर्ज के बढ़ते बोझ के तले बूढ़ा सुल्तान दम तोड़ देता है ।

                      साटन बुनने  में माहिर नारमत की बीवी नजाकत साटन के ताने वाले एकमात्र करघे पर काम करती थी । उसने दुख दर्द को उस तरह कभी नहीं महसूस किया था जैसे अन्य औरतों ने किया था । वह हंसमुख और खुश मिजाज थी लेकिन कई बार उसका मजाक माहौल को संजीदा कर देता । वही वर्कशॉप की अनाखा पर मख्सूम की कड़ी नजर रहती । वह पुराने शहर में खुले महिलाओं के क्लब में जाती थी, यह बात मख्सूम और कुद्र्तुल्लाको खतरे की घंटी लगती थी । आज वह क्लब जा रही है, संभव है कि जल्दी व स्वयं सहकारिता में भी सम्मिलित हो जाए फिर अगर उसका अनुसरण करते हुए अन्य औरतों ने भी ऐसा किया तो कुद्र्तुल्लाह के वर्कशॉप पर तो ताला लग जाएगा । नए कानून के हिसाब से उसे निकाल कर बाहर करना भी आसान नहीं था । इसलिए कुद्रतुल्लाह अपने सेवक मख्सूम को बार-बार चेताते हुए कहता है कि,” अपनी आंख खुली रखो, उसे अपनी नजर से दूर न होने दो ।“7 इस बात से उनके अंदर का डर साफ दिखाई पड़ता है । अनाखा की दो बेटियां थी बशारत और तुर्सुनाये ।  पति साबिर का देहांत हो चुका है ।  मां और बेटियांफ़ीम चाचा और सफिया चाची को ही अपना सब कुछ मानती थी । साबिर ने अपनी जिंदगी में सिर्फ अभाव देखा । तंगहाली में उसने कुली का काम करना शुरू कर दिया था । उसका मिलना जुलना कामरेड लोगों से होने लगा था । ऐसा ही उसका एक दोस्त था यफ़ीम दनीलोविच । सफिया और यफ़ीम की अपनी कोई औलाद नहीं थी । सबीर किले की रखवाली फौजी का हिस्सा था और उसी के चलते उसकी मृत्यु भी हुई । तब से यफ़ीम और सफिया ने उनके परिवार को बड़ा सहारा दिया ।

              उपन्यास की क्रांतिकारी और महत्वपूर्ण पात्र जुराखा कामरेड थी और पार्टी के कार्यों में बड़ी सक्रिय ।  औरतों के बीच उसका बड़ा आदर था । वह अपनी पार्टी विचारधारा से औरतों को जोड़ने का आवाहन करते हुए कहती है कि,” अपने दिल का सारा उत्साह, अपनी भावनाओं की सारी स्वच्छता और व्यग्रता, अपनी इच्छा शक्ति जो कुछ भी आप में है उसे सोवियतों के जनतंत्र को बनाए रखने और इसे एक कम्युनिस्ट भावना में पारंगत करने में अर्पित कर दें ..।“8  उसकी ऐसी तेजस्वी बातें वर्कशॉप की औरतों पर जादू  की तरह असर करती और वे उसकी समर्थन में खुलकर खड़ी हो जाती । यही कारण था कि वर्कशाप का मालिक जुराखा को  फूटी आंख भी पसंद नहीं करता था । औरतों ने हिम्मत से सहकारिता शुरू की, अध्यक्षा पर वार भी हुआ लेकिन वे हिम्मती औरतों को डिगा नहीं सके । अंततः बुज़दिल लोग बहादुर जुराखा  की हत्या कर देते हैं । उसकी मौत पर अनाखा कहती है,” हम तुमसे प्यार करते थे प्यारी बहन ।  हम तुम्हें कभी नहीं भूलेंगे और मैं तुम्हारी सौगंध लेती हूं ..... कामरेड़ों, आइये  हम एक सौगंध लें ।  तुमने जो काम शुरू किया था उसे हम पूरा करेंगे ।“9 इस तरह जुराखा की मौत ने इन महिलाओं को भावनात्मक रूप से और शक्ति दी । औरतों की भावी मिल के सामने जुराखा को दफन कर दिया गया ।

                  बाय शहर छोड़कर भाग चुका था और उसके बेटे नुस्रतुल्लाह ने उनका मकान मिल परियोजना के लिए दे दिया । मख्सूम ने भी यह स्वीकार किया की बा के चरणों में उसके जीवन के 30 वर्ष बर्बाद हो गए । निर्माण स्थल पर सब मिलकर काम करते थे । एर्गश की देखरेख में सारा काम व्यवस्थित ढंग से चल रहा था । कुद्रतुल्ला के पुराने वर्कशॉप को ठीक-ठाक कर वहां प्रशिक्षण का कार्य शुरू हुआ । वह एक तरह का तकनीकी स्कूल जैसा था । पार्टी ने जुराखा की जगह अनाखा को जिम्मेदारी सौंप दी थी । नाटकी ढंग से नुस्रतुल्लाह की हत्या आत्महत्या और उसकी तहरीर में इसके लिए इंजीनियर को जिम्मेदार ठहराया गया था । थोड़ी बहुत परेशानियों के साथ अंततः अनाखा के नेतृत्व मिल का श्री गणेश हुआ । फीता काटने के साथ यह उपन्यास भी समाप्त होता है।  मिल के सामने बनी जुराखा की कब्र पर लोग नियमित फूल चढ़ाते । उपन्यास इन शब्दों के साथ समाप्त होता है कि,” लेकिन अब 30 वर्ष हो गए हैं ,जब से लोग बसंत के शुरू से लेकर पतझड़ खत्म होने तक इस एकाकी कब्र पर फूल लाते रहे हैं । फूल तकरीबन रोज लाये जाते हैं और वह काली पट्टी पर कभी सुख नहीं पाते ।“10  इस तरह यह उपन्यास समाप्त होता है ।

डॉ. मनीष कुमार मिश्रा

विजिटिंग प्रोफ़ेसर(ICCR Chair)

ताशकंद स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़

ताशकंद, उज़्बेकिस्तान

 

डॉ. नीलूफ़र खोजाएवा

 अध्यक्ष

दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व एशियाई भाषा विभाग

ताशकंद राजकीय प्राच्य विश्वविद्यालय

ताशकंद, उज़्बेकिस्तान

 

 

 

 

 

संदर्भ :

1.     चिंगारी-अस्कद मुख्तार, हिन्दी अनुवाद- राय गणेश चंद्र, प्रगति प्रकाशन,ताशकंद-1979, पृष्ठ संख्या – 423

2.     वही , पृष्ठ संख्या – 425

3.        वही , पृष्ठ संख्या 428

4.        वही , पृष्ठ संख्या 429

5.        वही , पृष्ठ संख्या 03-04

6.        वही , पृष्ठ संख्या  -04

7.        वही , पृष्ठ संख्या  - 13

8.        वही , पृष्ठ संख्या  - 85

9.        वही , पृष्ठ संख्या  - 272

10.     वही , पृष्ठ संख्या  - 421

11.   https://www.goodreads.com/photo/author/15015255.Askad_Mukhtar

12.   https://www.britannica.com/biography/Asqad-Mukhtar

13.   ASKAD MUKHTAR IS A GREAT ARTIST- Akbarova Kholiskhan, Kokan State Pedagogical Institute is a teacher, NOVATEUR PUBLICATIONS, JournalNX- A Multidisciplinary Peer Reviewed Journal, ISSN No: 2581 – 4230, VOLUME 9, ISSUE 6, June -2023

14.   ASQAD MUKHTOR: AN UZBEK WRITER AND HIS WORKS, HAROLD R. BATTERSBY, Central Asiatic Journal, Vol. 15, No. 1 (1971), pp. 55-74 (20 pages), Published By: Harrassowitz Verlag.

15.   https://www.goodreads.com/author/show/17339986.Asqad_Muxtor

16.   https://www.bibliomania.ws/pages/books/62946/askad-mukhtar-aibeck-rahmat-faizi-aidyn-abdullah-kahhar-s-zunnunova/uzbekistan-speaks-short-stories

17.   Female images in the works of Askad Mukhtar, "Roots" and Vyacheslav Shugaev "RussianVenus", Kalonova Nargiza Nurzhovna, Independent researcher, teacher of the Russian language, Denau Institute for Entrepreneurship and Pedagogy. Journal of Multidisciplinary Innovations, Volume 11, November, 2o22. ISSN (E): 2788-0389

 

 

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