रविवार, 23 फ़रवरी 2025

भारत और उज्बेकिस्तान का संबंध - डॉ. उषा आलोक दुबे

 

                                             भारत और उज्बेकिस्तान का संबंध

                                                                           डॉ. उषा आलोक दुबे

प्रस्तावना

प्राचीन काल से ही भारत का विदेशों के साथ गहरा संबंध रहा है, क्योंकि  यह ऐसा देश है जो सहअस्तित्व व विश्वशान्ति पर विशेष ज़ोर देता रहा है। सांस्कृतिक, आर्थिक, और सामाजिक स्तरों पर भारत की विदेश नीति सक्रिय रही है, उसी का परिणाम है कि भारत आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अहम भूमिका में है। समय के साथ-साथ भारत ने व्यापारिक और राजनीतिक स्तर को मजबूती प्रदान करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है, साथ ही इसकी अर्थव्यवस्था विश्व की बढ़ती हुई व्यवस्था है।

भारत के सामयिक संबंधों की बात की जाए तो भारत शुरुवाती दौर से ही मित्रता का भाव रखने वाला देश है।  यदि हम बात करें मध्य एशिया देशों की तो भारत उज्बेकिस्तान की मित्रता इस बात का प्रमाण है कि यह संबंध कुछ वर्षों का नहीं बल्कि दशकों पुराना है, जिसे हम कई बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं।   

राजनीतिक परिप्रेक्ष्य :

राजनीतिक स्तर पर उज्बेकिस्तान का संबंध भारत के साथ स्नेहपूर्ण रहा है। भारत और पाकिस्तान के मैत्री पूर्ण रिश्ते में उज्बेकिस्तान की अहम भूमिका रही है। ताशकंद घोषणापत्र इस बात का प्रमाण है। उज्बेकिस्तान का दशकों से भारत के प्रति रवैया सकारात्मक रहा है,   जिसके फलस्वरूप भारत और उज्बेकिस्तान के रिश्ते और भी अधिक घनिष्ठ होते गए। 1955 में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ताशकंद का दौरा किया, जो उनकी राजकीय यात्रा थी। 1966में उज़्बेक सोवियत समाजवादी गणराज्य ने ताशकंद में बैठक आयोजित की थी, जिसकी मध्यस्थता  सोवियत प्रिमियर एलेक्सी कोसिगिन ने की थी। न्होंने लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब को ताशकंद में आमंत्रित किया था, जहां  दोनों देशों के बीच समझ और मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने के लिए अपना दृढ़ संकल्प व्यक्त किया गया था । फलस्वरुप दोनों देशों ने अपने-अपने सैन्य बल लौटा लि, ताकि दोनों देश के नागरिक शांति और सौहार्दपूर्ण  तरीके से जीवन यापन और अपने लोगों को सुरक्षा प्रदान कर सकें। ताशकंद समझौता पूरे विश्व में एतिहासिक रूप में जाना जाता है। इसी प्रकार भारत और उज्बेकिस्तान के रिश्ते और अधिक मजबूत बनाने के लिए देश के कई राजनेता पीवी नरसिम्हा राव,मनमोहन सिंह,वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  उज्बेकिस्तान का दौरा करते आए हैं। इसी प्रकार उज़्बेक राष्ट्रपति इस्लाम करीमोव कई बार भारत का आ चुके हैं। करीमोव के उत्तराधिकारीशावकत मिर्जियोयेव ने शरद ऋतु 2018 और जनवरी 2019 में नई दिल्ली का दौरा किया। राजकीय व्यक्तित्वों का दौरा यह दर्शाता है कि दोनों देश आपसी रिश्ते को लेकर कितने सजग हैं।  

उज्बेकिस्तान मध्य एशिया में स्थित होने के कारण विशाल ऊर्जा से परिपूर्ण है। अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए वह लगातार अन्य देशों के साथ जुड़ा हुआ है। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद उज्बेकिस्तान एक मजबूत अर्थव्यवस्था के साथ उभरा है। कच्चे माल एवं प्राकृतिक गैस से समृद्ध यह अन्य देशों के लिए आकर्षण का केंद्र बना है। दशकों पहले मध्यएशिया देशों के साथ जुडने का माध्यम सिल्क रूट था इस मार्ग को हम रेशम मार्ग के नाम से भी जानते है, जो सुदूर पूर्व यूरोप और मध्य एशिया देशों को जोड़ता था। इसी माध्यम से अनेक देश आपस में जुड़े थे। व्यवसायिक दृष्टि से देखें तो इसी के माध्यम से कई देश  आपसी व्यापारिक आयात-निर्यात करते थे।

समसायिक समय की यदि हम बात करे तो भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपने दौरों में कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए है, जिसमें आर्थिक सहयोग के साथ-साथ आतंकवाद के विरोध में, व्यापारिक स्तर में बढ़ौती आदि विषयों को लेकर राजनयिक निर्णय लिए गए है। महत्वपूर्ण है कि वर्तमान में  भारत और उज्बेकिस्तान के बीच रक्षा सहयोग भी बढ़ रहा है। दोनों देश मिलकर सैन्य अभ्यास करते हैं और रक्षा क्षेत्र में तकनीकी सहयोग पर काम कर रहे हैं,ताकि आतंकवाद का डट कर मुक़ाबला किया जा सके।

उज्बेकिस्तान का पड़ोसी देश अफगानिस्तान है, यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि आतंकवाद को रोकने में अहम भूमिका निभा सकता है। इस तरह हम देखते हैं कि राजनीतिक स्तर पर भारत और उज्बेकिस्तान की आपसी रणनीतियों को सफलता पूर्वक साझा किया जा रहा है।  

सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य:

उज्बेकिस्तान का भारत के साथ सांस्कृतिक संबंध काफी पुराना है।मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर का जन्म उज्बेकिस्तान में हुआ था और उसने भारत में एक बड़ा साम्राज्य स्थापित किया। दशकों से  दोनों देशों की सांस्कृतिक कलाएं एक दूसरे को प्रभावित करती आ रही है। 1995 से ही भारतीय सांस्कृतिक केंद्र ताशकंद में स्थापित है, जो दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करता आ रहा है और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दे  रहा है।2005 में इसका नाम बदलकर लालबहादुर शास्त्री भारतीय सांस्कृतिक केंद्र रखा गया जो वर्तमान समय में इसी नाम से जाना जाता है।

दोनों ही देश एक दूसरे की संस्कृति से इतने प्रभावित है कि वे एक दूसरे की भाषा सीख रहें हैं। उज्बेकिस्तान में हिंदी भाषा के प्रति भी रुचि बढ़ रही है। कई विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा के पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं और हिंदी साहित्य का अध्ययन भी हो रहा है। वहाँ के नागरिक हिन्दी विषय को ले कर पी.एच.डी तक की पढ़ाई कर रहे हैं। वहाँ भारतीय त्योहार, जैसे होली, दीवाली, और गणेश चतुर्थी,बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं। इन आयोजनों में स्थानीय लोग भी बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। भारतीय सांस्कृतिक केंद्र द्वारा नियमित रूप से सांस्कृतिक कार्यक्रम,प्रदर्शनियाँ और समारोह आयोजित किए जाते हैं, जिनमें भारतीय संस्कृति का प्रदर्शन किया जाता है।

2015 की यात्रा में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने संस्कृति और शिक्षा के आदान-प्रदान के साथ-साथ पर्यटन पर भी अधिक ज़ोर देते हुये कहा है कि "मैं संस्कृति और पर्यटन के क्षेत्रों में किए गए समझौतों को लेकर खुश हूँ क्‍योंकि ये हमारे लोगों को एक-दूसरे के नजदीक लाएंगे"परिणाम स्वरूप उज्बेकिस्तान में भारतीय पर्यटकों की संख्या भी बढ़ रही है, जो भारतीय संस्कृति के प्रसार में योगदान दे रहे हैं। साथ ही, उज्बेक पर्यटक भी भारत की यात्रा कर भारतीय संस्कृति का अनुभव कर रहे हैं।

दोनों देशों के बीच कला, शिल्प,और विचारधाराओं का आदान-प्रदान होता आ रहा है पहले सीमित साधनों के बावजूद ये एक दूसरे की संस्कृति से प्रभावित हुआ करते थे। वर्तमान समय में मीडिया ने अपनी अहम भूमिका निभाई है जिसके कारण भारतीय परिदृश्य से कई देश प्रभावित है। उज्बेकिस्तान में भारतीय फिल्मों और संगीत का बड़ा प्रशंसक वर्ग है। बॉलीवुड फिल्में वहाँ बहुत लोकप्रिय हैं और भारतीय अभिनेता-अभिनेत्रियों को वहां काफी पसंद किया जाता है। भारतीय नृत्य और संगीत भी उज्बेकिस्तान में सराहनीय हैं। कई स्थानीय नृत्य के साथ-साथ भारतीय संगीत वहाँ सिखाया जाता हैं। ताशकंद और अन्य बड़े शहरों में कई भारतीय रेस्तरां हैं जो भारतीय कलाकारों के नाम पर रेस्तरां खोले गए है। जैसे राजकपूर, द केसर ,अग्नि लाउंज आदि। इन जगहों पर भारतीय व्यंजनों का स्वाद के साथ-साथ भारतीय संगीत का आस्वाद लिया  जाता हैं। यह भारतीय खानपान संस्कृति को उज्बेकिस्तान में लोकप्रिय बना रहा हैं। समान्यत:  भारतीय रेस्तरां में उज्बेक और अन्य विदेशी पर्यटकों की भीड़ देखी जा सकती है, जो भारतीय भोजन का आनंद लेने आते हैं।

 

आज योग के प्रति लोगो का रुझान बढ़ा है। उज्बेकिस्तान में कई योग केंद्र और संस्थान योग प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं, और भारतीय योग शिक्षकों को विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता है। भारत की आयुर्वेदिक चिकित्सा भी वहाँ लोकप्रिय हो रही है, और अनेक व्यक्ति  आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धतियों का लाभ उठा रहे हैं।

उज्बेकिस्तान में भारतीय संस्कृति का प्रभाव गहरा और सर्वव्यापी है। यह सांस्कृतिक संबंध दोनों देशों के बीच मित्रता और सहयोग को और मजबूत करता है। भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं, जैसे कला, नृत्य, संगीत, योग और आयुर्वेद को उज्बेकिस्तान में व्यापक रूप से बढ़ावा मिल रहा है, जो दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को और समृद्ध बना रहा है।भारतीय पर्यटकों की उज्बेकिस्तान में बढ़ती संख्या और उज्बेक पर्यटकों का भारत में स्वागत, दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संबंधों को और समृद्ध कर रहा है।

आर्थिक परिप्रेक्ष्य:

भारत और उज्बेकिस्तान के बीच द्विपक्षीय व्यापार बढ़ रहा है। भारत मुख्य रूप से फार्मास्यूटिकल्स, मशीनरी और टेक्सटाइल्स से संबन्धित वस्तुओं का निर्यात करता है, जबकि उज्बेकिस्तान भारत को कच्चा कपास और रसायन निर्यात करता है। भारत की कई कंपनियाँ उज्बेकिस्तान में निवेश कर रही हैं, विशेषकर आईटी, कृषि और माइनिंग क्षेत्रों में यह निवेश बढ़ रहा है। 

भारत और उज्बेकिस्तान ने निवेश के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे दोनों देशों की कंपनियों को एक-दूसरेके देशों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।उज़्बेकिस्तान के पूर्व- राष्ट्रपति करीमोव की 2011 में भारत यात्रा के दौरान भारतीय तेल व प्राकृतिक निगम (ONGC) विदेश लिमिटेड (OVL) का उज़्बेकिस्तान की उज्बेनेफ्त्गाज़ के बीच द्विपक्षीय सम्बन्ध को आगे बढने के लिए Long Term Strategic Partnership” पर समझौता हुआ1991 के बाद से भारत लगातार उज्बेकिस्तान की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए बड़े निवेशकों में से एक हैं, जहां दोनों ही देश को आर्थिक रूप से सहयोग होता आया है। रोजगार को बढ़ावा मिले इस ओर भी बड़े पैमाने पर दोनों देश कार्यरत है। तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री ने कहा कि दोनों पक्षों में आर्थिक संबंधों के स्तर को बढ़ाने, उज़्बेकिस्तान में निवेश करने में भारतीय बिजनेस की अत्‍यधिक रुचि, भारतीय निवेश के लिए प्रक्रिया और नीतियों को और अधिक सुचारू बनाया जाए आदि पर राष्ट्रपति करीमोव द्वारा मेरे सुझाव पर सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की|" उज्बेकिस्तान में विभिन्न प्रकार के भारतीय व्यापारिक प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाता है, जिसमें भारतीय कंपनियाँ अपने उत्पादों और सेवाओं का प्रदर्शन करती हैं। इससे व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा मिलता है। साथ ही दोनों देशों की कंपनियाँ मिलकर संयुक्त उपक्रम स्थापित कर रही हैं, जो द्विपक्षीय व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने में सहायक हैं।

दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं, जो न केवल व्यापार को बल्कि दोनों देशों की अर्थव्यवस्था को भी लाभ पहुँचाएंगे। इन प्रयासों से दोनों देशों के व्यवसायियों के लिए नए अवसर पैदा हो रहे हैं।

पर्यटन एक महत्वपूर्ण माध्यम है जो दोनों देशों की न केवल संस्कृति से एक दूसरे से परिचित कराता है, वरन पर्यटन के द्वारा अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान की जा रही है। ऐसे कई स्थल है उज्बेकिस्तान में जहाँ पर्यटक अधिक संख्या में जाते हैं। समरकंद: यह ऐतिहासिक शहर, जो सिल्क रोड पर स्थित है, अपने अद्वितीय वास्तुशिल्प,जैसे रेजिस्तान स्क्वायर, बीबी-खानम मस्जिद और शाह--ज़िन्दा मकबरा, के लिए प्रसिद्ध है।

बुखारा: एक अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है। बुखारा में भारतीय पर्यटक आर्क ऑफ बुखारा, कालोन मीनार, और इस्माइल सामानी मकबरा जैसे स्थलों को देख सकते हैं।

खिवा: यह प्राचीन शहर अपनी ऐतिहासिक दीवारों और इचान कला (भीतरी शहर) के लिए प्रसिद्ध है, जो अंदरूनी इचान कला भाग में ५० ऐतिहासिक स्थल और २५० मध्यकालीन घर हैं।

ऐसे ही कई स्थल है जो भारतीयों के लिए आकर्षण का केंद्र है। उसी तरह भारत में दिल्ली, मध्यप्रदेश, बनारस, केरला आदि कई शहर है जहां विदेशी आना पसंद करते हैं। इस प्रकार पर्यटन भी दोनों देशों की अर्थव्यवस्था को विकसित करने में महत्वपूर्ण है।

निष्कर्षत: भारत और उज्बेकिस्तान के संबंध को विकसित करने में और भी कई बिन्दु महत्वपूर्ण भूमिका में है। शिक्षा के स्तर, सुरक्षा के स्तर, कनेक्टिविटी के स्तर, क्षेत्रीय एक्सचेंज, चिकित्सा के स्तर पर आदि ऐसे कई महत्वपूर्ण पहलू है जो दोनों देशों को सकारात्मक रूप से जोड़े रखे हैं। हालांकि कई महत्वपूर्ण मुद्दे पर दोनों देशों की सरकार ने अनिवार्य कदम उठाए हैं। जैसे आतंकवाद के विरोध में अफगानिस्तान से बात-चीत, साइबर क्राइम, आदि चुनौतियों को साथ में मिल कर विचार-विमर्श किए गए हैं। द्विपक्षीय समझौतों, व्यापारिक मुद्दों को बढ़ावा देने के लिए भी नए सिरे से कई कदम उठाए जा रहे हैं। उज्बेकिस्तान में भारतीय समुदाय की स्थिति सामान्यत: सकारात्मक और स्थिर है। भारतीय समुदाय, उज्बेकिस्तान में सीमित है, लेकिन विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय और योगदानशील है।

डॉ. उषा आलोक दुबे

एम.डी.महाविद्यालय , मुंबई

 

संदर्भ ग्रंथ सूची

·         https://eoi.gov.in/tashkent/?2385?004#

·         https://www.mea.gov.in/Speeches-Statementshi.htm?dtl/25430/media+statement+by+the+prime+minister+during+his+visit+to+uzbekistan

·         https://www.icwa.in/show_content.php?lang=1&level=3&ls_id=1570&lid=1514

·         https://eoi.gov.in/tashkent/?2615?000

·         https://en.wikipedia.org/wiki/India%E2%80%93Uzbekistan_relations

·         https://www.thehindu.com/news/national/Prime-Minister-Narendra-Modis-visit-to-Uzbekistan/article60325401.ece

 

 

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