गुरुवार, 28 अगस्त 2025

ताशकंद: एक शहर रहमतों का


 डॉ. मनीष कुमार मिश्रा को उज़्बेकिस्तान की स्मृतियों पर केंद्रित उनके कविता संग्रह "ताशकंद एक शहर रहमतों का" के प्रकाशन के लिए बधाई । हर कविता का जन्म किसी न किसी गहरे जीवनानुभव से जुड़ा होता है। कवि जब अपने जीवन की ठोस अनुभूतियों, संवेदनाओं और स्मृतियों को भाषा देता है, तभी वे काव्य की शक्ल ले पाती हैं। प्रस्तुत कविता–संग्रह “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” इस सत्य का प्रत्यक्ष प्रमाण है। यह संग्रह केवल कविताओं का संचय भर नहीं है, बल्कि एक जीवंत यात्रा–वृत्तांत सा है, जहाँ अनुभव, आत्मीयता, प्रेम, स्नेह और सांस्कृतिक संवाद एकाकार होकर इन कविताओं की शक्ल में ढल गए हैं।


ताशकंद, मध्य एशिया का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक नगर, अनेक साम्राज्यों का साक्षी । सोवियत और उत्तर–सोवियत परिवर्तनों से गुजरे हुए इस नगर में कवि ने लगभग डेढ़ वर्ष बिताए। उस अवधि में उन्होंने न केवल ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज विश्वविद्यालय में हिन्दी का अध्यापन किया, बल्कि उज़्बेकी समाज, संस्कृति और वातावरण को आत्मसात भी किया। अब कवि के लिए ताशकंद केवल एक नगर नहीं रहा, बल्कि वह उनके लिए स्मृति, आत्मीयता, जीवन–अनुभव और रचनात्मक प्रेरणा का स्रोत बन गया है। यही कारण है कि इस संग्रह की प्रत्येक कविता में एक आत्मीय स्वर सुनाई देता है। कहीं लाल बहादुर शास्त्री की स्मृति है, कहीं नवरोज़ का उल्लास; कहीं बर्फ़ की झरती परतों में प्रेम का दार्शनिक अर्थ उद्घाटित होता है तो कहीं समसा और चायखाना सभ्यताओं के मेल का प्रतीक बन जाते हैं।

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