दो दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद
निम्न मध्यवर्गीय भारतीय समाज और अमरकांत का साहित्य
(जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में )
दिनांक : 16-17 जनवरी 2026
प्रस्तावना :
हिंदी कथा-साहित्य में यथार्थवाद की सशक्त परंपरा को आगे बढ़ाने वाले कथाकारों में अमरकांत एक ऐसा नाम हैं जिन्होंने निम्न मध्यवर्गीय भारतीय समाज की संवेदी बनावट, अंतर्विरोध, संघर्ष और मूल्यगत विघटन को सघनता और ईमानदार दृष्टि से प्रस्तुत किया। उनके पात्र कोई 'विशिष्ट' या 'विलक्षण' व्यक्ति नहीं, बल्कि वही सामान्य जन हैं जो भारत की सड़कों, गलियों, मोहल्लों, चाय की दुकानों और सरकारी दफ्तरों में जीते हैं — थकते हैं, लड़ते हैं, हारते हैं और फिर उठते हैं।
अमरकांत की कहानियाँ— जैसे “दोपहर का भोजन”, “जिंदगी और जोंक”, “हत्यारे” आदि — भारतीय समाज के उस वर्ग की प्रतीकात्मक जीवन-गाथाएँ हैं जिन्हें न तो साहित्य में पर्याप्त स्थान मिला और न ही सामाजिक विमर्श में कोई खास आवाज। यह वर्ग आर्थिक रूप से सीमित, सांस्कृतिक रूप से जूझता हुआ और नैतिकता के संकट से घिरा हुआ है, परंतु फिर भी संवेदना, श्रम और स्वाभिमान के बल पर अपने जीवन को जीने की कोशिश करता है। अमरकांत ने इसी वर्ग के भीतर की अदृश्य वेदना और प्रतिरोध को अपनी लेखनी से उजागर किया।
इस दो दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद का उद्देश्य है :
· अमरकांत की साहित्यिक दृष्टि को सामाजिक संरचना के परिप्रेक्ष्य में समझना ।
· निम्न मध्यवर्गीय भारतीय समाज की समस्याओं और चेतना का गहन विश्लेषण करना ।
· यह जानना कि वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में अमरकांत का साहित्य कितना प्रासंगिक और मार्गदर्शक है।
आज जब भारत तेज़ी से आर्थिक वर्गों के पुनर्गठन और शहरीकरण के दौर से गुजर रहा है, तब यह अत्यंत आवश्यक है कि हम उस साहित्य को पुनर्पाठ करें जो भारतीय समाज की बुनियादी परतों को उजागर करता है — नारेबाज़ी से दूर, आत्मा के निकट। इस परिसंवाद में देशभर के साहित्यकार, आलोचक, समाजशास्त्री, शोधार्थी और हिंदीप्रेमी अमरकांत के साहित्य और उनके समाज दृष्टिकोण पर विचार-विमर्श करेंगे। यह न केवल अमरकांत को शताब्दी वर्ष की श्रद्धांजलि होगी, बल्कि हिंदी साहित्य को सामाजिक नीतियों और मानवीय दृष्टिकोण से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास भी।
आलेख लिखने हेतु उप विषय :
- अमरकांत की कहानियों में निम्न मध्यवर्गीय मनोविज्ञान
- ‘जिंदगी और जोंक’ और 'हत्यारे' जैसे पात्रों के माध्यम से सामाजिक अन्याय की पड़ताल
- आर्थिक संकट और नैतिक द्वंद्व: अमरकांत के पात्रों की आंतरिक संघर्ष गाथा
- अमरकांत और प्रेमचंद: यथार्थवादी परंपरा का विकास
- नारी और निम्न मध्यवर्ग: अमरकांत की कहानियों में स्त्री संवेदना
- शहरीकरण, बेरोजगारी और विस्थापन का चित्रण
- अमरकांत की दृष्टि में सांप्रदायिकता और सामाजिक तटस्थता
- हिंदी कथा साहित्य में 'सामान्यजन' का उद्भव: अमरकांत के संदर्भ में
- विकास और मूल्यहीनता के बीच फंसा समाज: अमरकांत की दृष्टि से
- वर्तमान कहानी लेखन में अमरकांत की छाया और प्रभाव
- कहानी में भाषा और शैली: अमरकांत की सहजता और कथ्य की प्रामाणिकता
- हाशिए के लोग, हाशिए की भाषा: अमरकांत और सामाजिक समरसता
- नवउदारवादी समय में अमरकांत का साहित्यिक प्रतिरोध
- पत्रकारिता से साहित्य तक: अमरकांत की वैचारिक यात्रा
- अमरकांत की कहानियों का दृश्यात्मक विश्लेषण: रंगमंच और फिल्म संभावनाएं
- “निम्न मध्यवर्गीय भारतीय समाज और अमरकांत का साहित्य”
- नारी और निम्न मध्यवर्ग: अमरकांत की कहानियों में स्त्री संवेदना
- शहरीकरण, बेरोजगारी और विस्थापन का चित्रण
- अमरकांत की दृष्टि में सांप्रदायिकता और सामाजिक तटस्थता
- हिंदी कथा साहित्य में 'सामान्यजन' का उद्भव: अमरकांत के संदर्भ में
- विकास और मूल्यहीनता के बीच फंसा समाज: अमरकांत की दृष्टि से
- वर्तमान कहानी लेखन में अमरकांत की छाया और प्रभाव
- कहानी में भाषा और शैली: अमरकांत की सहजता और कथ्य की प्रामाणिकता
- हाशिए के लोग, हाशिए की भाषा: अमरकांत और सामाजिक समरसता
- अमरकांत की कहानियाँ
- अमरकांत के उपन्यास
- अमरकांत का बाल साहित्य
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